बॉलीवुड एक्ट्रेस दीया मिर्जा इन दिनों फिल्म ‘भीड़’ में अपनी परफॉर्मेंस के लिए खूब तारीफें पा रही हैं. दीया इस फिल्म में एक ऐसी महिला के तौर पर नजर आई हैं जो लॉकडाउन में अपनी बेटी को होस्टल से वापस लेने के लिए निकल पड़ी है. निर्देशक अनुभव सिन्हा की इस फिल्म में दीया एक सीन में फूट-फूट कर रो पड़ीं. हालांकि इस फिल्म की स्क्रिप्ट में ऐसा कहीं नहीं था. लेकिन कैमरे के सामने सीन करते हुए अचानक रोती दीया को देख निर्देशक भी हैरान थे. हालांकि दिलचस्प ये है कि स्क्रिप्ट में न होते हुए भी ये सीन आपको फिल्म में देखने को मिलेगा. दीया ने अपनी इस फिल्म के अनुभव पर News18 Hindi Digital की दीपिका शर्मा से खास बातचीत की.
‘थप्पड़’ के बाद आप एक बार फिर अनुभव सिन्हा के साथ काम कर रही थीं. आपका अनुभव कैसा रहा?
दिया मिर्जा: अवयान 6 महीने का था जब मैं उसे घर पर छोड़कर शूट करने गई थी. इस शूट में कई ऐसी महिलाएं थीं जिनके बच्चे छोटे-छोटे थे. मैं उनसे बातें करती थी, उन्हें ध्यान से देखती थी. बल्कि फिल्म में भी एक सीन है, जब दूध की एक खाली बोतल मिट्टी में घूमती है. मैं एक मां हूं और इन चीजों ने मुझे अंदर तक झंझोर दिया था. हम अपने बच्चों की दूध की बोतल को 10 बार साफ करते हैं, स्टर्लाइज करते हैं, इतना एक-एक चीज का ध्यान देते हैं. इस सच ने मुझे अंदर तक हिला दिया कि हमारे पास कितना कुछ है और कई लोग बहुत थोड़े में भी अपनी जिंदगी चला रहे हैं और खुश भी हैं.
आप एक संवेनशीन इंसान हैं और अक्सर सामाजिक सरोकारों पर अपनी बात रखती हैं. ऐसे में इस फिल्म का कोई ऐसा सीन जिसे करना आपके लिए बहुत मुश्किल रहा हो ?
दीया मिर्जा: फिल्म में जब मेरा किरदार साइकिल चला रही उस बच्ची को पैसे देकर कहता है कि चलो रास्ता दिखाओ और जब बच्ची गिर जाती है तो अपने ड्राइवर को मदद करने से रोकती हूं, ये दोनों सीन मेरे लिए मुश्किल थे और मैं वास्तविकता में ऐसा कभी नहीं कर पाती. हालांकि इस सीन के लिए मेरा ये करना जरूरी था. ताकि हम कहानी के इस किरदार के जरिए लोगों को बता पाएं कि हम देख कर कितनी सारी चीजें अनदेखा कर देते हैं. लेकिन मेरी इंसानियत यहां पर छलकी की जब मेरा ड्राइवर वापस आता है तो मैं अपने आप पर इतनी शर्मिंदा थी कि अपने आंसू रोक नहीं पाई और रो पड़ी.
तो क्या सीन के आखिर में रोना स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं था?
दीया मिर्जा: नहीं, वो स्क्रिप्ट में नहीं था. क्योंकि मुझे उस पल में ऐहसास हुआ कि छी, मैं इस पल में कितनी भयानक और असंवेदनशील हो गई हूं और मैं आखिर ऐसा क्या कर सकती हूं.
दीया मिर्जा को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 20 साल हो गए हैं.
साउथ की एक्ट्रेस हैं साई पल्लवी जो पर्दे पर बिना मेकअप के नजर आती हैं. ‘भीड़’ में आप भी बिना मेकअप के नजर आईं. एक एक्ट्रेस के तौर पर बिना मेकअप काम करना क्या आपको आजादी महसूस कराता है?
दीया मिर्जा: मुझे मेकअप न करना बहुत ही इंपावरिंग (सशक्त) लगता है. मैं अक्सर अपनी जिंदगी में भी ऐसा ही करती हूं. लेकिन मैं ये भी मानती हूं कि मेकअप की भी अपनी सुंदरता है. कभी-कभी कुछ दिन ऐसे होते हैं जब खुद को एक पुश देने के लिए मुझे इसकी जरूरत होती है और मैं करती हूं. तब ये मेरी स्प्रिट बढ़ाता है. मुझे लगात है कि हमारी सेल्फ इमेज के लिए भी मेकअप से दूरी बनाना बहुत जरूरी है. हम सालों तक कोशिश करते हुए लोगों के सामने अपनी एक छवि तैयार करते हैं. पर इसके बाद हम ये तय कर लेते हैं कि जब मैं ऐसे दिखती हूं तभी मुझे स्वीकार किया जाता है. लेकिन मुझे लगता है कि एक एक्टर के तौर पर हमें इस आइडिया से मुक्ति पानी चाहिए. ताकि जब हम अपने किरदारों में हों तो अपने लुक्स से ज्यादा अपने काम को तवज्जों दें. मैं हमेशा स्मिता पाटिल और शबाना आजमी जी की फिल्में देखती रही हूं और उन्हें बहुत मानती हूं. उन्होंने बहुत ही रीयलिस्टिक फिल्में की हैं और उन फिल्मों में मेकअप भी लगाया है. ऐसा नहीं कि वो मेकअप नहीं लगाती थीं. जबकि ये बहुत खूबसूरत महिलाएं हैं. क्योंकि वह सिर्फ शरीर से ही नहीं बल्कि पूरी तरह खूबसूरत महिलाएं हैं और यही सामने रिफ्लेक्ट भी होता है.
भीड़ में आपने एक नेगेटिव किरदार किया है, क्या आप आगे और भी नेगेटिव शेड्स के किरदारों के लिए तैयार हैं?
दीया मिर्जा: मुझे लगता है कि एक्टर के तौर पर हमें हर तरह के किरदारों के लिए तैयार होना चाहिए. मेरा बस एक ही पॉइंट होता है कि जब मैं वक्त निकालकर काम पर जा रही हूं तो उस काम का कोई मकसद और मतलब होना चाहिए. मुझे सच में लगता है कि सिनेमा बहुत ही सशक्त माध्यम है जो समाज में असल में बदलाव ला सकता है. क्योंकि हम कहानी कह रहे हैं. दूसरा मुझे लगता है कि बदलाव काफी जरूरी है. एक तो जैसे आप दिखते हैं आपको वैसे ही पहले से एक इमेज में सेट कर दिया जाता है. ऊपर से अगर आप हमेशा ही अच्छे और बढ़िया लोगों के किरदार ही करते रहे तो वह बहुत ही बोरिंग होगा. तो मैं तो नेगेटिव शेड्स जरूर करना चाहूंगी, बस उसका कोई गहरा मतलब होना चाहिए. बिना किसी वजह से नेगेटिव रोल करने का मतलब नहीं.
जूतों के लिए मां से झगड़कर खुद कमाने के फैसले की वजह से मॉडलिंग और फिल्मों का करियर चुनने से लेकर आज इंडस्ट्री में एक मुकम्मल नाम बनने तक, दिया मिर्जा अपने इस सफर को कैसे डिस्क्राइब करेंगी.
दीया मिर्जा: ये सच है कि सफर की शुरुअता फाइनेंशियल इंडिपेंडेस से हुई थी और मुझे लगता है कि एक महिला के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने से बड़ा और कुछ नहीं हो सकता. आज जो भी मेरे पास है जो भी मैं जानती हूं वह मैंने अपने काम से ही सीखा है. जिन लोगों के साथ मैंने काम किया, जिन्होंने रिजेक्ट किया, जो मैंने अचीव किया सबने मुझे सिखाया है. इस सफर के दौरान मैंने अपने एक पैरेंट को खोया है, मैंने अपनी शक्तियों को पहचाना है. मैं अगर मुड़कर देखूं तो मैं अपना सफर इससे अलग नहीं चाहूंगी. मेरा मकसद मुझे पता है, मेरी कोई इंसिक्योरिटीज नहीं है, मैं अपने आप में पूरी तरह खुश और संतुष्ट हूं और मुझे किसी से कोई द्वेष नहीं है. यही मेरा सबसे अच्छा सफर है. मेरा सफर ऐसा ही होना चाहिए था, मैं खुश हूं और उम्मीद है आगे और काम करूंगी.
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Tags: Anubhav sinha, Bollywood, Dia Mirza
FIRST PUBLISHED : March 31, 2023, 13:02 IST